आज कल के माँ बाप सुबह स्कूल बस में बच्चेको बिठा केऐसेबाय बाय करते हैं जैसे पढ़नेनहीं विदेश यात्रा भेज रहें हो....और....एक हम थे जो रोज़ लात खा के स्कूलजाते थे.आधा बचपन तो साला इसी कन्फ्यूजन में बीत गया कि समबाहु, विषमबाहु और समद्विबाहु त्रिकोण के नाम हैं या राक्षसों के गर्मी पड़नी शुरू हो गई और लड़किया अभी से ही सुल्ताना डाकू बन के घुमने लगी.कभी कभी तो मालूम ही नही होता कि अपना शहर है या चम्बल का इलाका!कुछ लोग तो इस गर्मी मे ऐसी हाय तोबा मचा रहे हैं ,जैसे पिछली गर्मी इन्होने स्विट्ज़रलेंड मे बिताइ थी । हर तालियों के पिछे जरुरी नही आपकी तारिफ हो ..हो सकता हैं ..................??कोई तम्बाकू बना रहा हो ....
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